13वीं सदी मे बना रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर, जो विश्व धरोहर में शामिल, तैरने वाले पत्थर से निर्माण हुआ, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है

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Rudreshwara Ramappa Temple 2024 : – 13वीं सदी में बना यह मंदिर आज भी मजबूती के मामले में वैसे ही खड़ा है जैसे आज से 5 से 10 वर्ष पहले बना कोई इमारत हो जबकि इसकी बाद में बनी मंदिर खंडहर हो चुकी हैं वही यह मंदिर विश्व धरोहर में शामिल है .यूनेस्को ने तेलंगाना में स्थित यह मंदिर भगवान शिव को अर्पित है वर्ष 2019 में सरकार द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल में नामांकित किया गया, 3वीं सदी के काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को यूनेस्को ने वैश्विक धरोहर के रूप में स्वीकार किया है। आंध्र प्रदेश के काकतिया वंश के महाराजा गणपति देव सन 1213 में इस मंदिर का निर्माण सिला रखा था |




Rudreshwara Ramappa Temple
13वीं सदी मे बना रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर, जो विश्व धरोहर में शामिल, तैरने वाले पत्थर से निर्माण हुआ, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है 4

Rudreshwara Ramappa Temple : – राजा के सेनापति रहे सेनापति रेचारला रुद्र के देखरेख में ही इस मंदिर का निर्माण कराया गया था उस जमाने में इस मंदिर का निर्माण करने में 40 वर्षों का समय लगा जो उस समय के मूर्तिकार रहे निर्माण शिल्पकार रामप्पा ने किया, यह मंदिर विश्व में एक ऐसा मंदिर है जिस मंदिर का नाम किसी देवी देवता के नाम से लोगों को शिल्पी के नाम से जाना जाता है मंदिर 6 फुट ऊंचे तारे जैसे मंच पर खड़ा है जिसकी दीवारों छतों और स्तनों को जटिल नक्काशी की गई है |

Rudreshwara Ramappa Temple अन्य मंदिरों से क्यों है खास

इस मंदिर के निर्माण में जिस पत्थर का उपयोग किया गया है वह बेसाल्ट पत्थर है जो पृथ्वी पर बमुश्किल से मिलती है, जो आज भी धरती पर विद्यमान सभी पत्थरों से कठोर पत्थर मानी जाती है | उस जमाने में इसे केवल काटा ही नहीं गया था, अपितु इसमें नक्काशी भी की गई थी | 900 साल पहले इन पत्थरों पर बारीकी नकाशी देखने को मिल सकती है |

इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि उस जमाने में बनी इस मंदिर की छतें इतनी बारीकी कारीगरी की गई है कि इस जमाने की सीएनसी वीएमसी जैसी मशीन भी नहीं कर पाएंगे. पुरातत्व की टीम जब इस मंदिर की सर्वेक्षण करने पहुंची थी तब इस मंदिर की कारीगरी देख वह बहुत ही प्रभावित हुए थे पुरातत्व टीम द्वारा यह समझना मुश्किल हो गया था कि यह कौन सी पत्थर है जो 900 वर्षों में अभी तक मंदिर की कोई भी पत्थर में क्षति नहीं पहुंची है |

यह सब आज के जमाने में करना संभव ही नहीं है असंभव को भी है मंदिर इतनी भीषण आपदाओं को झेलने के बाद भी आज भी सुरक्षित है 6 फीट ऊंचे प्लेटफार्म पर बनाया मंदिर महाभारत और रामायण के दृश्य भी खेले गए हैं मंदिर की एक शिलालेख को तोड़ने के बाद पुरातत्व विभाग को पता चला कि यह पत्थर वजन में काफी हल्के हैं |

पुरातत्व विभाग द्वारा उस पत्थर को पानी में डालकर चेक किया गया तो वह टुकड़ा पानी में तैरने लगा जिससे कि मंदिर का एक और रहस्य उजागर होता है सबसे बड़ी रहस्य यह है कि इस मंदिर के निर्माण में लगा जो भी पत्थर है वह पृथ्वी पर आज कहीं नहीं मिलती है यह पत्थर आई कहां से जो आज तक लोगों को अचरज में डाले हुआ है |

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